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Flower cultivation

जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें

जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें

अभी सूरजमुखी की खेती करने का सही समय है. सूरजमुखी की खेती खाद्य तेल के लिए की जाती है. वैसे भी हमारे देश को खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है। आयात को कम करने के लिए सरकार का भी ध्यान सरसों और सूरजमुखी जैसी फसलों पर अधिक है। मार्च के महीने में इसकी बुवाई की जाती है। इसकी बुवाई करते समय याद रखें की खेत में गोबर की खाद, नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए. इसको सूरजमुखी नाम देने के पीछे भी एक रोचक कारण है।एक तो इसका फूल सूरज की तरह दिखता है दूसरा इसका फूल सूरज के हिसाब से घूमता है। आप कह सकते है की इसके फूल का मुँह सूरज की तरफ ही रहता है। सूरजमुखी की खेती किसानों के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है क्योंकि जब खेतों से सरसों, आलू, गेंहूं आदि से खेत खाली होते हैं तो इसकी खेती की जा सकती है। इसमें से जो तेल निकलता है वो बहुत ही पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी एवं जायद तीनो ही मौसमों में की जा सकती है। लेकिन खरीफ में सूरजमुखी पर अनेक रोग कीटों का प्रकोप रहता है। फूल छोटे होते है, तथा उनमें दाना भी कम पड़ता है तथा इतना स्वस्थ भी नहीं होता है, जायद में सूरजमुखी की खेती से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। इस मौसम की सूरजमुखी में मोटा दाना और उसमें तेल की मात्रा भी ज्यादा होती है। ये भी पढ़ें : सरसों की खेती: कम लागत में अच्छी आय

खेत की तैयारी:

मार्च या अप्रैल के महीने में जब खेत दूसरी फसल से खाली होता है तो खेत में इतनी नमी नहीं होती की उसको दूसरी फसल के लिए तैयार कर दिया जाये। इसके लिए पहले खेत को सूखा ही 2 जोत हैंरों या कल्टीवेटर से लगा देनी चाहिए और अगर संभव हो सके तो उसमें प्लाऊ से 8 से 10 इंच गहरी जुताई लगा कर मिटटी को पलट देना चाहिए जिससे कि ऊपर की मिटटी नीचे और नीचे की मिटटी ऊपर आ जाये। उसके बाद उसमें पलेवा ( सूखे खेत में पानी देना) करके जुताई आने पर कल्टीवेटर से 2 से 3 जुताई लगाकर पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत में नमी बनी रहे और समतल भी हो जाये।

उचित जलवायु और मिटटी:

सूरजमुखी के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। इसको बोने का सही समय फ़रवरी से मार्च का दूसरा सप्ताह उचित होती हैं क्योंकि अगर इसके फूल को बीज पकते समय बारिश नहीं होनी चाहिए अगर पकते समय बारिश हो जाती है तो इसको बहुत नुकसान होता है तथा इसकी फसल की गुणबत्ता भी खराब हो जाती है। इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है इसकी फसल को दोमट और रेतीली भुरभुरी वाली मिटटी में उगाना उचित होगा। सर्वप्रथम हमें ध्यान रखना चाहिए की जिस खेत में हम इसे लगा रहे हैं उसमे पानी निकासी की उचित व्यवस्था है की नहीं क्योंकि अगर इसके खेत में पानी भर जाता है तो इसके पेड़ ख़राब होने की संभावना होती है। ये भी पढ़ें : कहां कराएं मिट्टी के नमूने की जांच

उर्वरक की जरूरत:

हम जिस मिटटी में इसे लगा रहे हैं उसमें खाद की मात्रा कितनी है? उचित रहेगा की हम अपनी मिटटी का टेस्ट कराके उसमे जरूरत के हिसाब से ही नाइट्रोजन, फास्फोरस का प्रयोग करना चाहिए फिर भी हमें 80KG नाइट्रोजन और 60KG फास्फोरस का प्रति एकड़ के हिसाब से लेना चाहिए। नाइट्रोजन को खेत में बखेर देना चाहिए तथा जुताई लगा देनी चाहिए और फास्फोरस और पोटास को कुंडों में डालना चाहिए. अगर खेत में आलू की फसली की गई हो तो उसमे खाद की मात्रा 25 से 30 प्रतिशत तक काम की जा सकती है।

बुवाई का ठीक समय:

सूरजमुखी की फसल का सही समय फ़रवरी और मार्च के दूसरे सप्ताह तक होता है। इसकी फसल जून के दूसरे सप्ताह तक पक कर स्टोर हो जानी चाहिए या कहा जा सकता है कि जून के दूसरे सप्ताह तक फसल पक कर तैयार हो जानी चाहिए जिससे की बारिश शुरू होने से पहले घर आ जानी चाहिए। बारिश की वजह से इसमें बहुत नुकसान होता है।

बुवाई से पहले बीज की तैयारी:

बीज को बोने से 12 घंटे पहले भिगो देना चाहिए और बाद में निकाल कर इसे छाया में सुखा देना चाहिए। इसकी बुवाई दोपहर बाद करनी चाहिए जिससे कि इसके बीज को खेत में ठन्डे में उगने के लिए पर्याप्त माहौल मिल सके। गर्मी के मौसम में हमेशा याद रखें ज्यादातर बीजों  को भिगोकर बोने की सलाह दी जाती है क्योंकि गर्मी में तापमान दिन में बहुत ज्यादा होता है इस तापमान में बीज को अंकुरित होने के लिए पर्याप्त नमी नहीं मिल पाती है।

सूरजमुखी की निम्न उन्नत किस्में:

सूरजमुखी की निम्न उन्नत किस्में मार्डन :- इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 6 से 8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इसकी उपज समय अवधि 80 से 90 दिन है | इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 90 से 100 सेमी. तक होती है। इस प्रजाति की खेती बहुफसलीय क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।  इस प्रजाति में तेल की मात्र 38 से 40 प्रतिशत होती है। बी.एस.एच.–1 :- इस प्रजाति की उत्पादन 10 से 15 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 95 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 100 से 150 सेमी. तक होती है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 41 प्रतिशत होती है। एम.एस.एच. :- इस प्रजाति की उत्पादन 15 से 18 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 95 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 170 से 200  सेमी. तक होती है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 42 से 44 प्रतिशत होती है। सूर्या :– इस प्रजाति की उत्पादन 8 से 10 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 100 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 130 से 135 सेमी. तक होती है। इसप्रजाति की की खेती पिछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। इस प्रजाति में तेल की मात्र38 से 40  प्रतिशत होती है। ई.सी. 68415 :- इस प्रजाति की उत्पादन 8 से 10 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 110 से 115 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 180 से 200  सेमी. तक होती है। इसप्रजाति की की खेती पिछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 38 से 40 प्रतिशत होती है।

कीड़े और  रोकथाम:

सूरजमुखी की खेती में कई प्रकार के कीट रोग लगते है, जैसे कि दीमक हरे फुदके (डसकी बग) आदि है। इनके नियंत्रण के लिए कई प्रकार के रसायनो का भी प्रयोग किया जा सकता है। मिथाइल ओडिमेंटान 1 लीटर 25 ईसी या फेन्बलारेट 750 मिली लीटर प्रति हैक्टर 900 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।

कटाई:

सूरजमुखी की फसल एक साथ कटाई के लिए नहीं आती है इसके फूलों को तोड़ने से पहले देखें की वो हलके पीले रंग के हो गए है, तभी इनको तोड़ कर किसी छाया वाली जगह में सूखा लें। इसकी गहाई के दो तरीके हैं एक तो इसको फूल से फूल रगड़ कर भी बीज अलग किया जा सकता है या डंडे से पीट पीट कर निकला जा सकता है या फिर ज्यादा फसल है तो इसको निकालने के लिए थ्रेसर की मदद भी ली जा सकती है।
इस तरीके से रंगीन फूल गोभी की खेती कर बेहतरीन आय कर सकते हैं

इस तरीके से रंगीन फूल गोभी की खेती कर बेहतरीन आय कर सकते हैं

रंगीन फूलगोभियां दिखने में बेहद ही सुंदर और आकर्षक होती हैं। वहीं, इसके साथ-साथ यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी काफी अच्छी होती हैं। आज के इस वैज्ञानिक युग में हर चीजें आसान नजर आती हैं। विज्ञान ने सब कुछ करके रख दिया है। यहां पर कोई भी असंभव चीज भी संभव नजर आती है। अब चाहे वह खेती-किसानी से संबंधित चीज ही क्यों ना हों। बाजार के अंदर विभिन्न तरह की रंग बिरंगी फूल गोभियां आ गई हैं। दरअसल, आज हम आपको इस रंग बिरंगी फूल गोभियों की खेती के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं। ताकि आप अपने खेत में सफेद फूल गोभी के साथ-साथ रंगीन फूल गोभी का भी उत्पादन कर सकें। बाजार में इन गोभियों की मांग दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। ऐसी स्थिति में आप इनको बाजार में बेचकर काफी शानदार मुनाफा कमा सकते हैं। रंगीन फूलगोभियां किसानों को काफी मुनाफा प्रदान करती हैं।

रंगीन फूल गोभी की खेती

भारत के कृषि वैज्ञानिकों ने रंगीन फूल गोभी की नवीन किस्म की खोज की है। यह गोभियां हरी, नीली, पीली एवं नारंगी रंग की होती हैं। इन विभिन्न तरह के रंगों की गोभी का सेवन करने से लोगों को बीमारियों से छुटकारा भी मिल रहा है। इसकी खेती किसी भी तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। आपको इसके लिए पर्याप्त सिंचाई की आवश्यकता होती है। भारतीय बाजार में इन गोभियों की मांग बढ़ती जा रही है। इससे किसान भी इसका उत्पादन कर काफी मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।

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रंगीन फूलगोभी की बिजाई

भारत में रंगीन फूलगोभी की अत्यधिक पैदावार झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में होती है। इसकी खेती करने का सबसे उपयुक्त समय शर्दियों का होता है। आप इसकी नर्सरी सितंबर एवं अक्टूबर में लगा सकते हैं। साथ ही, खेत की तैयारी के उपरांत इसे 20 से 30 दिन पश्चात खेतों में लगा सकते हैं। इसकी शानदार पैदावार के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान उपयुक्त माना गया है। वहीं, खेती की मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच रहना चाहिए। किसानों को

रंगीन फूलगोभी की खेती से कितनी आय अर्जित होती है

यह रंग-बिरंगी गोभियां खेतों में बिजाई के पश्चात 100 से 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। किसान भाई रंगीन फूल गोभी का एक एकड़ में उत्पादन कर 400 से 500 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। बाजार में लोग इस रंग को देखते ही बड़े जोर शोर से इसकी खरीदारी कर रहे हैं। साधारण गोभी की बाजार का बाजार में भाव 20 से 25 रुपये होता है। तो उधर इन रंग बिरंगी गोभियों की कीमत 40 से 45 रुपये तक की होती है। ऐसी स्थिति में किसान भाई इसकी खेती कर काफी शानदार मुनाफा कमा सकते हैं।
सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी एक सदाबहार फसल है, इसकी खेती रबी, जायद और खरीफ के तीनों सीजन में की जा सकती है। बतादें, कि सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मार्च के माह को माना जाता है। इस फसल को कृषकों के बीच नकदी फसल के रूप में भी पहचाना जाता है। 

सूरजमुखी की खेती से किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। इसके बीजों से 90-100 दिनों के समयांतराल में 45 से 50% तक तेल हांसिल किया जा सकता है। 

सूरजमुखी की फसल को शानदार विकास देने के लिए 3 से 4 बार सिंचाई की जाती है, ताकि इसके पौधे सही तरीके से पनप सकें। अगर हम इसकी टॉप 5 उन्नत किस्मों की बात करें, तो इसमें एमएसएफएस 8, केवीएसएच 1, एसएच 3322, ज्वालामुखी और एमएसएफएच 4 आती हैं।

1. सूरजमुखी की एमएसएफएस-8 (MSFS-8) किस्म 

सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में एमएसएफएस-8 भी शम्मिलित है। इस किस्म के सूरजमुखी के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 से 200 सेमी तक रहती है। एमएसएफएस-8 सूरजमुखी के बीज में 42 से 44% तक तेल की मात्रा पाई जाती है।

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किसान को सूरजमुखी की इस फसल को तैयार करने में 90 से 100 दिनों का वक्त लगता है। MSFS-8 किस्म की सूरजमुखी फसल की यदि एकड़ भूमि पर खेती की जाती है, जो इससे लगभग 6 से 7.2 क्विंटल तक उपज मिलती है। 

2. सूरजमुखी की केवीएसएच-1 (KVSH-1) किस्म 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में शम्मिलित है, जो कि शानदार उत्पादन देती है। सूरजमुखी के इस किस्म वाले पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 से 180 सेमी तक होती है। 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी के बीज से लगभग 43 से 45% तक तेल प्राप्त होता है। किसान को सूरजमुखी की इस उन्नत किस्म को विकसित करने में 90 से 95 दिनों की समयावधि लगती है। अगर केवीएसएच-1 सूरजमुखी की फसल को एकड़ भूमि पर लगाया जाए, तो इससे तकरीबन 12 से 14 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है। 

3. सूरजमुखी की एसएच-3322 (SH-3322) किस्म 

सूरजमुखी की शानदार उपज देने वाली किस्मों में एसएच-3322 भी शुमार है। इस सूरजमुखी की उन्नत किस्म के पौधों की ऊंचाई तकरीबन 137 से 175 सेमी तक पाई जाती है। एसएच-3322 सूरजमुखी के बीज से लगभग 40-42% फीसद तक तेल की मात्रा हांसिल होती है। 

किसान को एसएच-3322 किस्म की सूरजमुखी फसल को विकसित करने में 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। सूरजमुखी की एसएच-3322 किस्म को अगर एक एकड़ जमीन पर उगाया जाए, तो इससे तकरीबन 11.2 से 12 क्विंटल तक की उपज हांसिल हो सकती है। 

4. सूरजमुखी की ज्वालामुखी (Jwalamukhi) किस्म 

सूरजमुखी की ज्वालामुखी किस्म के बीजों में 42 से 44% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। किसान को इसकी फसल तैयार करने में 85 से 90 दिनों का वक्त लगता है। 

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ज्वालामुखी पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 सेमी तक रहती है। सूरजमुखी की इस किस्म को एक एकड़ भूमि पर लगाने से लगभग 12 से 14 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है। 

5. सूरजमुखी की एमएसएफएच-4 (MSFH-4) किस्म

सूरजमुखी की इस एमएसएफएच-4 किस्म की खेती रबी और जायद के सीजन में की जाती है। इस फसल के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 सेमी तक पाई जाती है। 

एमएसएफएच-4 सूरजमुखी के बीजों में तकरीबन 42 से 44% तक तेल की मात्रा विघमान रहती है। इस किस्म की फसल को तैयार करने में किसान को 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। 

अगर किसान इस किस्म की फसल को एक एकड़ खेत में लगाते हैं, तो इससे करीब 8 से 12 क्विंटल तक की उपज बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती है।

बागवानी: मौसमी आधार पर फूलों की खेती से जुड़ी अहम जानकारी

बागवानी: मौसमी आधार पर फूलों की खेती से जुड़ी अहम जानकारी

आजकल भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपने बाग बगीचों में अलग अलग तरह के फूलों को उगाकर मानसिक सुकून हांसिल कर सकते हैं। आज हम आपको मौसमिक आधार पर कुछ विशेष फूलों की जानकारी प्रदान करेंगे। 

आप इन पौधों को गमलों, बरामदों, टोकरियों और खिड़कियों में बड़ी ही आसानी से उगा सकते हैं। सालाना या मौसमी फूल वाले पौधे उन्हें कहा जाता है, जो अपना जीवन चक्र एक वर्षा या एक मौसम में पूर्ण कर लेते हैं ।

फूलों के पौध तैयार करने की विधि

मौसमी फूलों के पौधे अलग अलग तरह से तैयार किये जाते हैं। दरअसल, कुछ फूलों के पौधों को पहले पौधशाला में तैयार करने के पश्चात क्यारियों में लगायें। 

इसके उपरांत विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के बीज सीधे क्यारियों में लगा दिये जाते हैं। इनके बीज काफी छोटे होते हैं। इनकी सही तरीके से बेहतर देखभाल करके पौध को तैयार कर लिया जाता है।

मृदा चयन एवं तैयारी 

किसान भाई इस तरह की जमीन का चुनाव करें, जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश हों, सिंचाई और जल निकासी की अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हों। फूलों की खेती के लिये रेतीली दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 

जमीन को तकरीबन 30 सेमी की गहराई तक खोदें, गोबर की खाद, उर्वरक, आकार के अनुरूप मिश्रित करें। (1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में 25-30 क्विंटल गोबर की खाद) वर्षा ऋतु में पौधशाला की देखभाल अन्य मौसमों की अपेक्षा में ज्यादा करें।

बीज की बुवाई और रोपाई

क्यारियों को आकार के मुताबिक एकसार करके 5 सेमी के फासले पर गहरी पंक्तियाँ निर्मित करके उनमें 1 सेमी की दूरी पर बीज रोपण करें। 

बीज बुवाई के दौरान इस बात का विशेष ख्याल रखें कि बीज एक सेमी से ज्यादा गहरा ना हो पाए। इसके बाद में इसको हल्की परत से ढकें। सुबह शाम हजारे से पानी दें। जब पौध तकरीबन 15 सेमी ऊँची हो जाए तब रोपाई करें।

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क्यारियों में रोपाई एक निश्चित दूरी पर ही करें। सबसे आगे बौने पौधे 30 सेमी तक ऊँचाई वाले 15-30 सेमी दूरी पर, मध्यम ऊँचाई 30 से 75 सेमी वाले पौधे, 35 सेमी से 45 सेमी तथा लंबे 75 सेमी से ज्यादा ऊँचाई रखने वाले पौधे 45 सेमी से 50 सेमी के फासले पर रोपाई करें।

फूलों की देखरेख से जुड़े बिंदु 

सिंचाई: वर्षा ऋतु में सिंचाई की अधिक जरूरत नहीं पड़ती है। अगर काफी वक्त तक वर्षा ना हो तो उस स्थिति में जरूरत के अनुरूप सिंचाई करें। शरद ऋतु में 7-10 दिन एवं ग्रीष्म ऋतु में 4-5 दिन के समयांतराल पर सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार जमीन से नमी और पोषक तत्व ग्रहण करते रहते हैं, जिसके चलते पौधों के विकास तथा बढ़ोतरी दोनों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। अर्थात उनकी रोकथाम के लिए खुरपी की मदद से घास-फूस निकालते रहें।

खाद एवं उर्वरक: पोषक तत्वों की उचित मात्रा, भूमि, जलवायु और पौधों की प्रजाति पर निर्भर करता है। आम तौर पर यूरिया- 100 किलोग्राम, सिंगल सुपरफॉस्फेट 200 किलो ग्राम एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश 75 किलोग्राम का मिश्रण बनाकर 10 किलोग्राम प्रति 1000 वर्ग मीटर की दर से जमीन में मिला दें। उर्वरक देने के दौरान ख्याल रखें कि जमीन में पर्याप्त नमी हो।

तरल खाद: मौसमी फूलों की सही और बेहतर बढ़वार फूलों के बेहतरीन उत्पादन के लिये तरल खाद अत्यंत उपयोगी मानी गयी है। गोबर की खाद और पानी का मिश्रण उसमें थोड़ी मात्रा में नाइट्रोजन वाला उर्वरक मिलाकर देने से फायदा होता है ।

जलवायु एवं मौसमिक आधार पर फूलों का विभाजन 

वर्षा कालीन मौसमी फूल

इन पौधों के बीजों की अप्रैल-मई में पौधशाला में बोवाई करें और जून-जुलाई में इसकी पौध को क्यारियों या गमलों में लगायें। मुख्य रूप से डहेलिया, वॉलसम, जीनिया, वरबीना आदि के पौध रोपित करें ।

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शरद कालीन मौसमी फूल 

  1. इन पौधों के बीजों को अगस्त-सितम्बर माह में पौधशाला में बोयें एवं अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में गमलों या क्यारियों के अंतर्गत रोपाई करें। इन पर फूल लगना करीब फरवरी-मार्च में शुरू होते हैं। प्रमुख रूप से स्वीट सुल्तान, वार्षिक गुलदाउदी, क्लार्किया, कारनेशन, लूपिन, स्टाक, पिटुनिया, फ्लॉक्स, वरवीना, पैंजी, एस्टर और कार्नफ्लावर आदि के पौधे लगायें ।

ग्रीष्म कालीन मौसमी फूल 

इन पौधों के बीज जनवरी में बोयें तथा फरवरी में लगायें इन पर अप्रैल से जून तक फूल रहते हैं। मुख्य रूप से जीनिया, कोचिया, ग्रोमफ्रीना, एस्टर, गैलार्डिया, वार्षिक गुलदाउदी लगायें।

बीज इकठ्ठा करना 

बीज के लिए फल चुनते समय फूल का आकार, फूल का रंग, फूल की सेहत अच्छी ही चुननी चाहिये। जब फूल पक कर मुरझा जायें तब उसे सावधानी से काट कर धूप में सुखा लें फिर सावधानी से मलकर उनके बीज निकाल लें और फिर उन्हें शीशे के बर्तन या पॉलीथिन की थैली में बंद कर लें।

मौसमी फूलों के प्रमुख पौधे इस प्रकार हैं 

बाड़ के लिये पौधे: गुलदाउदी, गेंदा।

गमले में लगाने हेतु: गेंदा, कार्नेशन, वरवीना, जीनिया, पैंजी आदि ।

पट्टी, सड़क या रास्ते पर लगाने हेतु: पिटुनिया, डहेलिया, केंडी टफ्ट आदि ।

सुगंध के लिये पौधे: स्वीट पी, स्वीट सुल्तान, पिटुनिया, स्टॉक, वरबीना, बॉल फ्लॉक्स ।

क्यारियों में लगाने हेतु: एस्टर, वरवीना, फ्लॉस्क, सालविया, पैंजी, स्वीट विलयम, जीनिया।

शैल उद्यानों में लगाने हेतु: अजरेटम, लाइनेरिया, वरबीना, डाइमार्फोतिका, स्वीट एलाइसम आदि ।

लटकाने वाली टोकरियों में लगाने हेतु: स्वीट, लाइसम, वरवीना, पिटुनिया, नस्टरशियम, पोर्तुलाका, टोरोन्सिया। 

गैलार्डिया यानी नवरंगा फूल की खेती से जुड़ी फायदेमंद जानकारी

गैलार्डिया यानी नवरंगा फूल की खेती से जुड़ी फायदेमंद जानकारी

गैलार्डिया को सामान्य तौर पर कंबल फूल या नवरंगा के नाम से भी पहचाना जाता है। इसका नाम मैत्रे गेलार्ड डी चारेनटोन्यू के नाम पर रखा गया था, जो एक 18वीं सदी के फ्रांसीसी मजिस्ट्रेट जो एक उत्साही वनस्पतिशास्त्री थे। 

यह एक वार्षिक या बारहमासी पौधा होता है। इसका तना सामान्यतः शाखाओं में बंटा होता है। वहीं, यह लगभग 80 सेंटीमीटर (31.5 इंच) की अधिकतम ऊंचाई तक खड़ा होता है। 

गैलार्डिया को नवरंगा फूल के नाम से भी जाना जाता है। यह फूल सुन्दर रूप से रंगीन, डेजी जैसे फूल पैदा करती है। इसका इस्तेमाल बड़े स्तर पर मंदिरों में व शादी समारोह में सजावट करने में किया जाता है। 

यह अल्पकालिक बारहमासी पौधा होता है, जो कि शुरूआती गर्मियों में पीले, नारंगी युक्तियों के साथ चमकदार लाल फूल पैदा करती है। 

नवरंगा फूलों के पौधे बहुमुखी और बहुत ही सहजता से उगने वाले पौधे हैं। इसकी खेती करके काफी मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।

गैलार्डिया की खेती के लिए जलवायु और भूमि

नवरंगा फूलों को गर्म जगहों में सहजता से लगाया जा सकता है। इसके लिए ऐसी जगहों का चयन करें जहां अधिकतम 6-8 घंटे सीधे सूर्य की रौशनी मिलती रहे, सही प्रकार से सूखी, चिकनी और रेतीली मृदा को इसकी खेती के लिए चुना जा सकता है। जो कि एक तटस्थ पीएच हो तो फूलों के पौधों को बहुत ही कम देखभाल की आवश्यकता पड़ती है।

गैलार्डिया के फूल की उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं 

एरीजीयोना सन गैलार्डिया  

यह 6-12 इंच के विभिन्न प्रकार के चमकीले नारंगी, लाल रंग के केंद्र वाले पौधे होते है जिनकी बाहरी पुखुडिय़ां पीले रंग की होती है।

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गैलार्डिया फैनफेयर  

यह तुरही के आकर का 14 इंच का ऊंचा पौधा होता है जिसकी पुखुडिय़ां पीले रंग के साथ गहरे लाल रंग की होती है इन पौधों के केन्द्र नारंगी होते है ।

गैलार्डिया सनसेट पॉपी  

यह किस्मों के पौधे दिखने में सुन्दर डबल गुलाब जैसे लाल पुखुडिय़ां के पीले रंग में डूबे हुए होते है ।

गैलार्डिया गेबलीन   

यह कठोर किस्म के होते हैं जो कि गहरे हरे पत्तियों के साथ महरून रंग के पुखुडिय़ां वाले होते हैं।

बरगंडी कम्बल फूल  

यह किस्म अपने नाम के अनुसार गहरे लाल, बरगंडी रंग के होते है जिसकी लम्बाई 24-36 इंच तक होती है।

मुरब्बा के साथ गैलार्डिया  

इसके नारंगी रंग के फूल होते हैं जिसकी लम्बाई लगभग 2 फुट के आस-पास होती है इन किस्मों की लम्बाई अधिक होने के कारण इसे सहारे की आवश्यकता होती है।

गैलार्डिया संतरे और नींबू   

यह किस्म दूसरे नवरंगा फूलों की तुलना में नरम रंग के होते है जो कि 2 फुट लम्बे पौधे होते हैं, जिस पर पीले रंग के केंद्रीय शंकु आकर के फूल लगते हैं इन किस्मों को कठोर क्षेत्र में लगया जा सकता है।

गैलार्डिया के बीज की मात्रा व बुवाई प्रबंधन 

गैलार्डिया या नवरंगा फूलों के बीजों को गर्मियों में सीधे बगीचे में रोपा जा सकता है या फिर इनको गमलों में भी लगाया जा सकता है। गैलार्डिया को एक हेक्टेयर में उगाने के लिए 500 से 600 ग्राम बीज की जरूरत पड़ती है। 

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बीजों की बुवाई से पूर्व उन्हें फफूंदीनाशक से उपचारित कर लेना चाहिए। फफूंदीनाशक के रूप में केप्टान या थाइराम का इस्तेमाल किया जाता है।

बीजों की बुवाई करते समय एक बीज से दूसरे बीज की दूरी 3 सेमी तथा एक कतार की दूसरी कतार के बीच की दूरी 5 सेमी रखनी चाहिए तथा बीजों को 2 सेमी से ज्यादा गहरा नहीं बोना चाहिए। बीजों की बुवाई के बाद करीब 4 से 6 सप्ताह बाद पौध खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। 

गैलार्डिया की पौध को कैसे तैयार किया जाता है ?

गैलार्डिया की पौध तैयार करने के लिए भूमि से लगभग 10 से 15 सेमी ऊपर क्यारियां बनाएं, ताकि अतिरिक्त जमा पानी आसानी से बाहर निकल सके। 

गैलार्डिया के एक हेक्टेयर की पौध तैयार करने के लिए 150 वर्ग मीटर क्षेत्रफल वाली नर्सरी पर्याप्त रहती है। पौध के लिए क्यारियां 3 मीटर, लंबी एक मीटर चौड़ी तथा 10 से 15 सेमी ऊंची तैयार करें। 

गैलार्डिया के लिए खेत तैयार करने के लिए 3 से 4 जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। पौधों का खेत में रोपण हमेशा शाम के समय ही करना चाहिए तथा रोपण के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए।

गैलार्डिया में सिंचाई, खाद एवं उर्वरक प्रबंधन 

गमले में फूलों के लिए पानी और उर्वरक की आवश्यकता होती है। यह किसी भी उर्वरक के बिना भी सहजता से बढ़ सकती है। लेकिन, नवरंगा फूलों में पौधे निषेचन के लिए 1 बार उर्वरक की आवश्यकता होती है। 

कम्बल फूलों के बीजों को बोने से पूर्व अच्छी गुणवत्ता वाली जैविक खाद को मृदा में 2:1 के अनुपात में  सही ढ़ंग से मिला दें। 

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जैविक खाद के रूप में गोबर की खाद या केंचुए की खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं, कम्बल फूलों को बहुत ही कम पानी की आवश्यकता होती है।

गैलार्डिया की खेती में खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण सामान्यतः एक महत्वपूर्ण क्रिया है। खरपतवार, पानी और पोषक तत्वों के लिए फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करके बीजों की पैदावार को कम कर देते हैं। 

खरपतवार नियंत्रण के लिए मल्चिंग एक शानदार विकल्प हो सकता है। इसके अतिरिक्त रासायनिक खरपतवारों का छिडक़ाव करके भी नियंत्रण किया जा सकता है। जैसे पेनांट मैगनम एट्रिलीन 4 से पहले रोपण के एक छोटे से भाग पर इनका परीक्षण विवेकपूर्ण अवश्य करें।

कीचड़ में ही नहीं खेत में भी खिलता है कमल, कम समय व लागत में मुनाफा डबल !

कीचड़ में ही नहीं खेत में भी खिलता है कमल, कम समय व लागत में मुनाफा डबल !

कम लागत में ज्यादा मुनाफा कौन नहीं कमाना चाहता ! लेकिन कम लागत में खेत पर कमल उगाने की बात पर चौंकना लाजिमी है, क्योंकि आम तौर पर सुनते आए हैं कि कमल कीचड़ में ही खिलता है। 

जी हां, कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो कम लागत में ज्यादा उत्पादन, संग-संग ज्यादा कमाई के लिए कृषकों को खेतों में कमल की खेती करनी चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों ने कमल को कम लागत में भरपूर उत्पादन और मुनाफा देने वाली फसलों की श्रेणी में शामिल किया है। 

लेकिन यह बात भी सच है -

जमा तौर पर माना जाता है कि तालाब झील या जल-जमाव वाले गंदे पानी, दलदल आदि में ही कमल पैदा होता, पनपता है। लेकिन आधुनिक कृषि विज्ञान का एक सच यह भी है कि, खेतों में भी कमल की खेती संभव है। 

न केवल कमल को खेत में उगाया जा सकता है, बल्कि कमल की खेती में समय भी बहुत कम लगता है। अनुकूल परिस्थितियों में महज 3 से 4 माह में ही कमल के फूल की पैदावार तैयार हो जाता है।

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कमल के फूल का राष्ट्रीय महत्व -

भारत के संविधान में राष्ट्रीय पुष्प का दर्जा रखने वाले कमल का वैज्ञानिक नाम नेलुम्बो नुसिफेरा (Nelumbo nucifera, also known as Indian lotus or Lotus) है। भारत में इसे पवित्र पुष्प का स्थान प्राप्त है। 

भारत की पौराणिक कथाओं, कलाओं में इसे विशिष्ट स्थान प्राप्त है। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति के शुभ प्रतीक कमल को उनके रंगों के हिसाब से भी पूजन, अनुष्ठान एवं औषथि बनाने में उपयोग किया जाता है। 

सफेद, लाल, नीले, गुलाबी और बैंगनी रंग के कमल पुष्प एवं उसके पत्तों, तनों का अपना ही महत्व है। भारतीय मान्यताओं के अनुसार कमल का उद्गम भगवान श्री विष्णु जी की नाभि से हुआ था। 

बौद्ध धर्म में कमल पुष्प, शरीर, वाणी और मन की शुद्धता का प्रतीक है। दिन में खिलने एवं रात्रि में बंद होने की विशिष्टता के अनुसार मिस्र की पौराणिक कथाओं में कमल को सूर्य से संबद्ध माना गया है।

कमल का औषधीय उपयोग -

अत्यधिक प्यास लगने, गले, पेट में जलन के साथ ही मूत्र संबंधी विकारों के उपचार में भी कमल पुष्प के अंश उत्तम औषधि तुल्य हैं। कफ, बवासीर के इलाज में भी जानकार कमल के फूलों या उसके अंश का उपयोग करते हैं।

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खेत में कमल कैसे खिलेगा ?

हालांकि जान लीजिये कमल की खेती के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है। खास तौर पर नमीयुक्त मिट्टी इसकी पैदावार के लिए खास तौर पर अनिवार्य है। 

यदि भूमि में नमी नहीं होगी तो कमल की पैदावार प्रभावित हो सकती है। मतलब साफ है कि खेत में भी कमल की खेती के लिए पानी की पर्याप्त मात्रा जरूरी है। ऐसे में मौसम के आधार पर भी कमल की पैदावार सुनिश्चित की जा सकती है।

खास तौर पर मानसून का माह खेत में कमल उगाने के लिए पुूरी तरह से मददगार माना जाता है। मानसून में बारिश से खेत मेें पर्याप्त नमी रहती है, हालांकि खेत में कम बारिश की स्थिति में वैकल्पिक जलापूर्ति की व्यवस्था भी रखना जरूरी है।

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खेत में कमल खिलाने की तैयारी :

खेत में कमल खिलाने के लिए सर्व प्रथम खेत की पूरी तरह से जुताई करना जरूरी है। इसके बाद क्रम आता है जुताई के बाद तैयार खेतों में कमल के कलम या बीज लगाने का। इस प्रक्रिया के बाद तकरीबन दो माह तक खेत में पानी भर कर रखना जरूरी है। 

पानी भी इतना कि खेत में कीचड़ की स्थिति निर्मित हो जाए, क्योंकि ऐसी स्थिति में कमल के पौधों का तेजी से सुगठित विकास होता है। भारत के खेत में मानसून के मान से पैदा की जा रही कमल की फसल अक्टूबर माह तक तैयार हो जाती है। 

जिसके बाद इसके फूलों, पत्तियों और इसके डंठल ( कमलगट्टा ) को उचित कीमत पर विक्रय किया जा सकता है। मतलब मानसून यानी जुलाई से अक्टूबर तक के महज 4 माह में कमल की खेती किसान के लिए मुनाफा देने वाली हो सकती है।

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कमल के फूल की खेती की लागत और मुनाफे का गणित :

एक एकड़ की जमीन पर कमल के फूल उगाने के लिए ज्यादा पूंजी की जरूरत भी नहीं। इतनी जमीन पर 5 से 6 हजार पौधे लगाकर किसान मित्र वर्ग भरपूर मुनाफा कमा सकते हैं। 

बीज एवं कलम आधारित खेती के कारण आंकलित जमीन पर कमल उपजाने, खेत तैयार करने एवं बीज खर्च और सिंचाई व्यय मिलाकर 25 से 30 हजार रुपयों का खर्च किसान पर आता है।

1 एकड़ जमीन, 25 हजार, 4 माह -

पत्ता, फूल संग तना (कमलगट्टा) और जड़ों तक की बाजार में भरपूर मांग के कारण कमल की खेती हर हाल में मुुनाफे का सौदा कही जा सकती है। कृषि के जानकारों के अनुसार 1 एकड़ जमीन में 25 से 30 हजार रुपयों की लागत आती है।

इसके बाद 4 महीने की मेहनत मिलाकर कमल की पैदावार से अनुकूल स्थितियों में 2 लाख रुपयों तक का मुनाफा कमाया जा सकता है।

ठंडी और आर्द्र जलवायु में रंगीन फूल गोभी की उपज कर कमायें अच्छा मुनाफा, जानें उत्पादन की पूरी प्रक्रिया

ठंडी और आर्द्र जलवायु में रंगीन फूल गोभी की उपज कर कमायें अच्छा मुनाफा, जानें उत्पादन की पूरी प्रक्रिया

छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग व्यक्ति के जीवन में रंगो का महत्वपूर्ण स्थान होता है। विभिन्न प्रकार के रंग लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं।लेकिन क्या आपको पता है कि अब ऐसी ही रंगीन प्रकार की फूल गोभी (phool gobhee; cauliflower) का उत्पादन कर, सेहत को सुधारने के अलावा आमदनी को बढ़ाने में भी किया जा सकता है। फूलगोभी के उत्पादन में उत्तरी भारत के राज्य शीर्ष पर हैं, लेकिन वर्तमान में बेहतर वैज्ञानिक तकनीकों की मदद से दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में भी फूलगोभी का उत्पादन किया जा रहा है।

फूलगोभी में मिलने वाले पोषक तत्व :

स्वास्थ्य के लिए गुणकारी फूलगोभी में पोटेशियम और एंटीऑक्सीडेंट तथा विटामिन के अलावा कई जरूरी प्रकार के मिनरल भी पाए जाते हैं। शरीर में बढ़े रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के नियंत्रण में भी फूल गोभी का महत्वपूर्ण योगदान है। किसी भी प्रकार की रंगीन फूल गोभी के उत्पादन के लिए ठंडी और आर्द्र जलवायु अनिवार्य होती है। उत्तरी भारत के राज्यों में सितंबर महीने के आखिरी सप्ताह और अक्टूबर के शुरुआती दिनों से लेकर नवम्बर के पहले सप्ताह में 20 से 25 डिग्री का तापमान रहता है, वहीं दक्षिण भारत के राज्यों में यह तापमान वर्ष भर रहता है, इसलिए वहां पर उत्पादन किसी भी समय किया जा सकता है।


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रंगीन फूलगोभी की लोकप्रिय और प्रमुख किस्में :

वर्तमान में पीले रंग और बैंगनी रंग की फूलगोभी बाजार में काफी लोकप्रिय है और किसान भाई भी इन्हीं दो किस्मों के उत्पादन पर खासा ध्यान दे रहे हैं। [caption id="attachment_11024" align="alignnone" width="357"]पीली फूल गोभी (Yellow Cauliflower) पीली फूल गोभी[/caption] [caption id="attachment_11023" align="alignnone" width="357"]बैंगनी फूल गोभी (Purple Cauliflower) बैंगनी फूल गोभी[/caption] पीले रंग वाली फूलगोभी को केरोटिना (Karotina) और बैंगनी रंग की संकर किस्म को बेलिटीना (Belitina) नाम से जाना जाता है।

कैसे निर्धारित करें रंगीन फूलगोभी के बीज की मात्रा और रोपण का श्रेष्ठ तरीका ?

सितंबर और अक्टूबर महीने में उगाई जाने वाली रंगीन फूलगोभी के बेहतर उत्पादन के लिए पहले नर्सरी तैयार करनी चाहिए। एक हेक्टेयर क्षेत्र के खेत में नर्सरी तैयार करने में लगभग 250 से 300 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

कैसे करें नर्सरी में तैयार हुई पौध का रोपण ?

तैयार हुई पौध को 5 से 6 सप्ताह तक बड़ी हो जाने के बाद उन्हें खेत में कम से कम 60 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। रंगीन फूलगोभी की बुवाई के बाद में सीमित पानी से सिंचाई की आवश्यकता होती है, अधिक पानी देने पर पौधे की वृद्धि कम होने की संभावना होती है।

कैसे करें खाद और उर्वरक का बेहतर प्रबंधन ?

जैविक खाद का इस्तेमाल किसी भी फसल के बेहतर उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है, इसीलिए गोबर की खाद इस्तेमाल की जा सकती है।सीमित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग उत्पादकता को बढ़ाने में सहायता प्रदान कर सकता है। समय रहते मृदा की जांच करवाकर पोषक तत्वों की जानकारी प्राप्त करने से उर्वरकों में होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सकता है। यदि मृदा की जांच नहीं करवाई है तो प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 120 किलोग्राम नाइट्रोजन और 60 किलोग्राम फास्फोरस के अलावा 30 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल किया जा सकता है। गोबर की खाद को पौध की बुवाई से पहले ही जमीन में मिलाकर अच्छी तरह सुखा देना चाहिए। निरन्तर समय पर मिट्टी में निराई-गुड़ाई कर अमोनियम और बोरोन जैसे रासायनिक खाद का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।


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कैसे करें खरपतवार का सफलतापूर्वक नियंत्रण ?

एक बार पौध का सफलतापूर्वक रोपण हो जाने के बाद निरंतर समय पर निराई-गुड़ाई कर खरपतवार को खुरपी मदद से हटाया जाना चाहिए। खरपतवार को हटाने के बाद उस स्थान पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, जिससे दुबारा खरपतवार के प्रसार को रोकने में मदद मिल सके।

रंगीन फूलगोभी में होने वाले प्रमुख रोग एवं उनका इलाज :

कई दूसरे प्रकार के फलों और सब्जियों की तरह ही रंगीन फूलगोभी भी रोगों से ग्रसित हो सकती है, कुछ रोग और उनका इलाज निम्न प्रकार है :-
  • सरसों की मक्खी :

यह एक प्रकार कीट होते हैं, जो पौधे के बड़े होने के समय फूल गोभी के पत्तों में अंडे देते हैं और बाद में पत्तियों को खाकर सब्जी की उत्पादकता को कम करते हैं।

इस रोग के इलाज के लिए बेसिलस थुरिंगिएनसिस (Bacillus thuringiensis) के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

इसके अलावा बाजार में उपलब्ध फेरोमोन ट्रैप (pheromone trap) का इस्तेमाल कर बड़े कीटों को पकड़ा जाना चाहिए।

यह रोग छोटे हल्के रंग के कीटों के द्वारा फैलाया जाता है। यह छोटे कीट, पौधे की पत्तियों और कोमल भागों का रस को निकाल कर अपने भोजन के रूप में इस्तेमाल कर लेते हैं, जिसकी वजह से गोभी के फूल का विकास अच्छे से नहीं हो पाता है।

[caption id="attachment_11030" align="alignnone" width="800"]एफिड रोग (cauliflower aphid) एफिड रोग[/caption]

इस रोग के निदान के लिए डाईमेथोएट (Dimethoate) नामक रासायनिक उर्वरक का छिड़काव करना चाहिए।

  • काला विगलन रोग :

फूल गोभी और पत्ता गोभी प्रकार की सब्जियों में यह एक प्रमुख रोग होता है, जो कि एक जीवाणु के द्वारा फैलाया जाता है। इस रोग की वजह से पौधे की पत्तियों में हल्के पीले रंग के धब्बे होने लगते हैं और जड़ का अंदरूनी हिस्सा काला दिखाई देता है। सही समय पर इस रोग का इलाज नहीं दिया जाए तो इससे तना कमजोर होकर टूट जाता है और पूरे पौधे का ही नुकसान हो जाता है।

इस रोग के इलाज के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइड (copper oxychloride) और स्ट्रैप्टो-साइक्लीन (Streptocycline)  का पानी के साथ मिलाकर एक घोल तैयार किया जाना चाहिए, जिसका समय-समय पर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

यदि इसके बावजूद भी इस रोग का प्रसार नहीं रुकता है तो, रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर इकट्ठा करके उन्हें जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।

इसके अलावा रंगीन फूलगोभी में आर्द्रगलन और डायमंड बैकमॉथ (Diamondback Moth) जैसे रोग भी होते हैं, इन रोगों का इलाज भी बेहतर बीज उपचार और वैज्ञानिक विधि की मदद से आसानी से किया जा सकता है। आशा करते हैं Merikheti.com के द्वारा हमारे किसान भाइयों को हाल ही में बाजार में लोकप्रिय हुई नई फसल 'रंगीन फूलगोभी' के उत्पादन के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में आप भी बेहतर लागत-उत्पादन अनुपात को अपनाकर अच्छी फसल ऊगा पाएंगे और समुचित विकास की राह पर चल रही भारतीय कृषि को सुद्रढ़ बनाने में अपना योगदान देने के अलावा स्वंय की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत बना पाएंगे।
कैसे करें सूरजमुखी की खेती? जानें सबसे आसान तरीका

कैसे करें सूरजमुखी की खेती? जानें सबसे आसान तरीका

रबी का सीजन शुरू हो चुका है, सीजन के शुरू होने के साथ ही रबी की फसलों की बुवाई भी बड़ी मात्रा में शुरू हो चुकी है। इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं सूरजमुखी या सूर्यमुखी (Sunflower) की खेती की सम्पूर्ण जानकारी ताकि किसान भाई इस बार रबी के सीजन में सूरजमुखी की खेती करके ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकें। अभी भारत में मांग के हिसाब से सूरजमुखी का उत्पादन नहीं होता है, इसलिए भारत सरकार को घरेलू आपूर्ति के लिए विदेशों से सूरजमुखी आयत करना पड़ता है, ताकि घरेलू मांग को पूरा किया जा सके। भारत में इसकी खेती सबसे पहले साल साल 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर में की गई थी, जिसके बाद अच्छे परिणाम प्राप्त होने पर देश भर में इसकी खेती की जाने लगी। फिलहाल महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, आंधप्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा और पंजाब के किसान सूरजमुखी की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में हर साल लगभग 15 लाख हेक्टेयर पर सूरजमुखी की खेती की जाती है, साथ ही देश के किसान इसकी खेती से 90 लाख टन की पैदावार लेते हैं। अगर सूरजमुखी की खेती में औसत पैदावार की बात करें तो 1 हेक्टेयर में 7 क्विंटल सूरजमुखी के बीजों का उत्पादन होता है। सूरजमुखी एक तिलहनी फसल है, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इसकी खेती सर्दी के सीजन में की जाए तो अच्छी पैदावार निकाली जा सकती है।


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सूरजमुखी की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करें

खेत तैयार करने से पहले मिट्टी की जांच अवश्य करवा लें, यदि खेत की मिट्टी ज्यादा अम्लीय या ज्यादा क्षारीय है तो उस जमीन में सूरजमुखी की खेती करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इसके साथ ही विशेषज्ञों से उर्वरक के इस्तेमाल की सलाह जरूर लें ताकि जरुरत के हिसाब से खेत की मिट्टी में पर्याप्त उर्वरक इस्तेमाल किये जा सकें। खेत तैयार करते समय ध्यान रखें कि खेत से पानी की निकासी का सम्पूर्ण प्रबंध होना चाहिए। इसके बाद गहरी जुताई करें और खेत को समतल करके बुवाई के लिए तैयार कर लें।

सूरजमुखी की खेती के लिए बाजार में उपलब्ध उन्नत किस्में

ऐसे तो बाजार में सूरजमुखी के बीजों की कई किस्में उपलब्ध हैं, लेकिन अधिक और अच्छी क्वालिटी की पैदावार के लिये किसान कंपोजिट और हाइब्रिड किस्मों का इस्तेमाल करते हैं। इस प्रकार की उन्नत किस्मों का इस्तेमाल करने पर सूरजमुखी की खेती 90 से 100 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है, और उसके बीजों में तेल का प्रतिशत भी 40 से 50 फीसदी के बीच होता है। अगर बेस्ट किस्मों की बात करें तो किसान भाई सूरजमुखी की बीएसएस-1, केबीएसएस-1, ज्वालामुखी, एमएसएफएच-19 और सूर्या किस्मों का चयन कर सकते हैं।


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सूरजमुखी की बुवाई कैसे करें

सूरजमुखी की बुवाई रबी सीजन की शुरुआत में की जाती है। अगर माह की बात करें तो अक्टूबर का तीसरा और चौथा सप्ताह इसके लिए बेहतर माना गया है। इसकी बुवाई से पहले बीजों का उपचार कर लें ताकि बुवाई के समय किसानों के पास बेस्ट किस्म के बीज उपलब्ध हों। सूरजमुखी के बीजों की बुवाई छिड़काव और कतार विधि दोनों से की जा सकती है। लेकिन भारत में कतार विधि, छिड़काव विधि की अपेक्षा बेहतर मानी गई है। कतार विधि का प्रयोग करने से खेती के प्रबंधन में आसानी रहती है। इसके लिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि लाइनों के बीच 4-5 सेमी और बीजों के बीच 25-30 सेमी का फासला रखना चाहिए।

सूरजमुखी की खेती में खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल कैसे करें

जैविक खाद एवं उर्वरक किसी भी खेती के उत्पादन को बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी होते हैं। इसलिए सूरजमुखी की खेती में भी इन चीजों का उपयोग आवश्यकतानुसार किया जाता है। सूरजमुखी के बीजों का क्वालिटी प्रोडक्शन प्राप्त करने के लिए 6 से 8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें। इसके साथ विशेषज्ञ 130 से 160 किग्रा यूरिया, 375 किग्रा एसएसपी और 66 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।


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सूरजमुखी की खेती में सिंचाई किस प्रकार से करें

सुरजमुखी की खेती में सामान्य सिंचाई की दरकार होती है। इसकी खेती में 3 से 4 सिंचाईयां पर्याप्त होती हैं। इस खेती में यह सुनिश्चित करना बेहद अनिवार्य है कि खेत में नमी बनी रहे, ताकि पौधे बेहचर ढंग से पनप पाएं। सूरजमुखी की फसल में पहली सिंचाई 30-35 दिन के अंतराल में करनी होती है। इसके बाद हर तीसरे सप्ताह इस फसल में पानी देते रहें। इस फसल में फूल आने के बाद भी हल्की सिंचाई की दरकार होती है। यह एक फूल वाली खेती है इसलिए इसमें कीटों का हमला होना सामान्य बात है। इस फसल में एफिड्स, जैसिड्स, हरी सुंडी व हेड बोरर जैसे कीट तुरंत हमला बोलते हैं। जिससे सूरजमुखी के पौधों को रतुआ, डाउनी मिल्ड्यू, हेड राट, राइजोपस हेड राट जैसे रोग घेर लेते हैं। इसके अलावा इस खेती में पक्षियों का हमला भी आम बात है। फूलों में बीज आने के बाद पक्षी भी बीज चुन लेते हैं, ऐसे में किसानों को विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए ताकि वो इन परेशानियों से निपट पाएं। बुवाई के लगभग 100 दिनों बाद सूरजमुखी की खेती पूरी तरह से तैयार हो जाती है। इसके फूल बड़े होकर पूरी तरह से पीले हो जाते है। फूलों की पंखुड़ियां झड़ने के बाद किसान इस खेती की कटाई कर सकते हैं। कटाई करने के बाद इन फूलों को 4 से 5 दिन तक तेज धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद मशीन की सहायता से या पीट-पीटकर फूलों के बीजों को अलग कर लिया जाता हैं। अगर पैदावार की बात करें तो अच्छी परिस्थियों में किसान भाई उन्नत किस्मों और आधुनिक खेती के साथ एक हेक्टेयर में 18 क्विंटल तक सूरजमुखी के बीजों की पैदावार ले सकते हैं। सामान्य परिस्थियों में यह पैदावार 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।


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हाल ही में भारत सरकार ने सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी कर दी है। इस लिहाज से अब सूरजमुखी की खेती करके किसान भाई पहले की अपेक्षा ज्यादा कमाई कर सकते हैं। सरकार ने रबी सीजन के लिए सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 209 रूपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है। इस हिसाब से अब किसान भाइयों के लिए सूरजमुखी के बीजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,650 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
इस फूल की खेती से किसान तिगुनी पैदावार लेकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

इस फूल की खेती से किसान तिगुनी पैदावार लेकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

किसान भाई आजकल कम खर्च में अधिक आय देने वाली फसलों की कृषि को अधिकाँश तवज्जो दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में किसानों के मध्य फूलों का उत्पादन को लेकर लोकप्रियता बहुत बढ़ी है। इसी क्रम में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के किसान उच्च स्तर पर सूरजमुखी की कृषि से मोटी आय अर्जित कर रहे हैं। रबी फसलों की कटाई केवल कुछ दिनों के अंदर ही चालू होने वाली है। इसके उपरांत कुछ माह खेत खाली रहेंगे, उसके उपरांत खरीफ की फसलों की खेती की शुरुआत हो जाएगी। रबी फसलों की कृषि आरंभ हो जाएगी। रबी फसलों की कटाई एवं खरीफ फसलों की बुवाई के मध्य किसान नगदी फसलों का उत्पादन कर सकते हैं। इसके चलते आप मार्च माह में सूरजमुखी के पौधों की भी कृषि कर सकते हैं। इस फसल की खेती पर भारत सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जाता है।

सूरजमुखी के फूल की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी कौन-सी है

सूरजमुखी का पौधा तिलहन फसलों के अंतर्गत आता है। सूरजमुखी को साल में तीन बार उगाया जा सकता है। तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र में इसका उत्पादन बड़े रकबे पर की जाती है। रेतीली दोमट मिट्टी एवं काली मिट्टी इसके उत्पादन हेतु सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है। जिस भूमि पर इसका खेती की जाती है। उसका पीएच मान 6.5 एवं 8.0 के मध्य होना आवश्यक है।

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सूरजमुखी के बीज का उपचार किस प्रकार होता है

खेतों में सूरजमुखी के बीज रोपने से पूर्व उसका उपचार करना काफी आवश्यक है। नहीं तो, विभिन्न बीज जनित बीमारियों से आपकी फसल प्रभावित होकर नष्ट हो सकती है। सर्व प्रथम सूरजमुखी के बीजों को साधारण जल में 24 घंटे के लिए भिगो दें एवं उसके बाद बुवाई से पूर्व छाया में सुखा लें। बीजों पर थीरम 2 ग्राम प्रति किग्रा व डाउनी फफूंदी से संरक्षण हेतु मेटालैक्सिल 6 ग्राम प्रति किलो अवश्य छिड़कें। इसके उपरांत ही एक निश्चित दूरी की क्यारियों में इसकी बुवाई करें। बुवाई के उपरांत जब पौधा निकल आए तब 20 से 25 दिनों के समयांतराल पर इसकी सिंचाई करते रहें।

सूरजमुखी फूल तैयार होकर कटाई के लिए कब तैयार हो जाता है

सूरजमुखी की फसल की कटाई तब की जाती है, जब समस्त पत्ते सूख जाते हैं। साथ ही, सूरजमुखी के फूल के सिर का पिछला हिस्सा नींबू पीला पड़ जाता है। समय लगने पर दीमक का संक्रमण हो सकता है एवं फसल नष्ट हो सकती है। सूरजमुखी के पौधे से तेल निकालने के अतिरिक्त औषधियों तक में इसका इस्तेमाल किया जाता है। कृषक इस फसल से कम खर्च, कम समय में लाखों की आय कर सकते हैं।

फूलों के उत्पादन से किसान लाखों कमा सकते हैं

फूलों के उत्पादन से किसान भाई काफी अच्छी आमदनी कर सकते हैं। यह बात अब किसान समझने भी लगे हैं। इसलिए आजकल किसान फूलों की खेती करने की दिशा में अपनी काफी रूचि दिखा रहे हैं। भारत के अधिकांश किसान आज भी परंपरागत खेती किया करते हैं। जिसकी वजह से किसानों को कोई खास प्रगति या उन्नति नहीं मिल पाती है। किसान भाई काफी सजग और जागरूक दिखाई दे रहे हैं। तभी आज फूलों की खेती के रकबे मे काफी वृद्धि देखने को मिल रही है।
जरबेरा के फूलों की खेती से किसानों की बदल सकती है किस्मत, होगी जबरदस्त कमाई

जरबेरा के फूलों की खेती से किसानों की बदल सकती है किस्मत, होगी जबरदस्त कमाई

भारत में किसान परंपरागत खेती से इतर अब नई तरह ही खेती पर भी फोकस कर रहे हैं, ताकि वो भी समय के साथ अपने व्यवसाय से अच्छी खासी कमाई कर सकें। इसलिए इन दिनों किसान भाई अब बागवानी से लेकर फूलों की खेती करने लगे हैं। भारत में फूल हर मौसम में पाए जाते हैं जो किसानों के लिए पूरे साल भर आमदनी का स्रोत बने रहते हैं। ऐसी ही एक फूल की खेती के बारे में हम आपको जानकारी देने जा रहे हैं। जिसे जरबेरा के फूल के नाम से जाना जाता है। इसका उपयोग सजावट के साथ-साथ औषधीय कामों में भी होता है। यह हर मौसम में पाया जाने वाला फूल है। इसके फूल पीले, नारंगी, सफेद, गुलाबी, लाल रंगों के साथ कई अन्य रंगों में भी पाए जाते हैं। इससे यह फूल बेहद आकर्षक लगते हैं। इस फूल के लंबे डंडे होने के कारण इसका उपयोग शादी समारोह में सजावट के तौर पर किया जाता है। इसके अलावा देश की फार्मेसी कंपनियां भी इसके पौधे का उपयोग दवाइयां बनाने के लिए करती हैं। सुंदर फूल होने के कारण बाजार में इन फूलों का जबरदस्त मांग रहती है। लोग फूलों का उपयोग मंदिरों में सजावट के लिए भी करते हैं।

इस प्रकार की जलवायु में उत्पादित होता है जरबेरा

जरबेरा के लिए सामान्य तापमान वाले मौसम की जरूरत होती है। मतलब सर्दियों में जहां इसके पौधे को धूप की जरूरत होती है वहीं गर्मियों में इसके पौधे को छांव की जरूरत होती है। अगर ये परतिस्थियां नहीं मिलती तो जरबेरा का उत्पादन कम हो सकता है। इसलिए इसकी खेती को पॉलीहाउस में ही सफलतापूर्वक किया जा सकता है। ये भी पढ़े: पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

इस तरह से करें खेत की तैयारी

वैसे तो जरबेरा की खेती हर मिट्टी में हो सकती है लेकिन रेतीली भुरभुरी मिट्टी इस खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है। इस खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.0-7.2 के बीच होना चाहिए। खेत तैयार करने के पहले खेत की 2 से 3 बार अच्छे से जुताई कर लें। इसके बाद एक बेड तैयार कर लें जिसकी चौड़ाई 1 मीटर होनी चाहिए, साथ ही ऊंचाई 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसके साथ ही मिट्टी में जैविक खाद भी डालें।

इस समय करें पौधों की बुवाई

जरबेरा के पौधों की बुवाई फरवरी से लेकर मार्च तक की जा सकती है, इसके साथ ही दूसरे मौसम में इसकी बुवाई सितंबर से लेकर अक्टूबर तक की जा सकती है। बुवाई करते समय ध्यान रहे कि पौधे का ऊपरी भाग मिट्टी से 3 सेंटीमीटर ऊपर होना चाहिए। साथ ही एक पौधे से दूसरे पौधे की की दूरी 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए और कतार से कतार की दूरी 40 सेंटीमीटर हिनी चाहिए। मिट्टी के एक बेड पर पौधों की 2 कतारें आसानी से लगाई जा सकती हैं।

ऐसे करें सिंचाई

जैसे ही जरबेरा के पौधों की बेड पर रोपाई करें उसके तत्काल बाद पानी देना चाहिए। इसके बाद एक माह तक लगातार सिंचाई करते रहना चाहिए। इससे पौधे की जड़ों की पकड़ मिट्टी में बन सकेगी। शुरुआत में जरबेरा के पौधों को प्रतिदिन सिंचाई की जरूरत होती है।

ऐसे करें जरबेरा के फूलों की तुड़ाई

खेती शुरू करने के करीब 12 सप्ताह बाद जरबेरा में फूल आने लगते हैं। लेकिन फूलों की तुड़ाई 14 सप्ताह के बाद करना चाहिए। सुबह या शाम के समय तुड़ाई करने पर फूलों की गुणवत्ता बनी रहती है। इसलिए फूलों की तुड़ाई के लिए इसी समय का चुनाव करें। जरबेरा के फूलों को डंठल के साथ तोड़ना चाहिए। इसके डंठल की लंबाई 50-55 सेंटीमीटर तक होती है। एक पौधा एक साल में करीब 45 फूल तक उत्पादित कर सकता है। तुड़ाई के ठीक बाद फूलों को पानी से भारी बाल्टी में रखना चाहिए ताकि फूल मुरझाने न पाएं।
इस राज्य में आमदनी दोगुनी करने वाली तकनीक के लिए दिया जा रहा 50 % अनुदान

इस राज्य में आमदनी दोगुनी करने वाली तकनीक के लिए दिया जा रहा 50 % अनुदान

छत्तीसगढ़ राज्य के कृषक बड़े पैमाने पर शेडनेट तकनीक द्वारा फूलों का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनकी आमदनी भी काफी बढ़ गई है। किसान केवल पारंपरिक फसलों की खेती से हटकर फूल उगाकर भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं। फूलों की मांग भारत सहित पूरी दुनियाभर में है। यदि किसान भाई शेडनेट तकनीक से फूलों का उत्पादन करें, तब उनको अधिक आमदनी होगी। इस तकनीक से जरिए वर्षभर एक ही खेत में फूल का उत्पादन किया जा सकता है। शेडनेट तकनीक में खर्चा भी कम आता है। ऐसी स्थिति में किसान भाई शेडनेट तकनीक का उपयोग करके अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं। छत्तीसगढ़ जनसंपर्क के अनुसार, छत्तीसगढ़ के किसान बड़े पैमाने पर शेडनेट तकनीक द्वारा फूलों का उत्पादन कर रहे हैं। नतीजतन, उनकी आमदनी भी काफी बढ़ चुकी है। साथ ही, इस तकनीक के चलते फूलों की पैदावार भी बढ़ गई है। विशेष बात यह है, कि यहां के कृषक शेडनेट के अतिरिक्त पॉली हाऊस, ड्रिप और मच्लिंग तकनीक द्वारा भी फूलों की खेती कर रहे हैं। इन किसानों द्वारा उत्पादित फूलों की मांग हैदराबाद, भुवनेश्वर, अमरावती और नागपुर जैसे बड़े शहरों में भरपूर है। 

शेडनेट तकनीक किसानों की मेहनत कम कर देती है

फूलों की खेती करने के लिए शेडनेट तकनीक बेहद फायदेमंद है। इस तकनीक के उपयोग से खेती करने पर फसल में कीट संक्रमण और रोगिक भय नहीं रहता है। अब ऐसी स्थिति में फूलों की पैदावार एवं गुणवत्ता पर असर नहीं पड़ता हैं। विशेष बात यह है, कि दीर्घकाल तक एक ही स्थान पर फसल के लगे रहने से कृषकों को परिश्रम कम करना पड़ता है। इससे उनकी आमदनी भी दोगुनी हो जाती है। 

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छत्तीसगढ़ सरकार शेडनेट तकनीक के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

जानकारों के अनुसार, इस तकनीक का उपयोग गर्मी से पौधों को संरक्षण देने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। शेडनेट के अंतर्गत आप गर्मी के मौसम में नहीं उगने वाले पौधों का भी उत्पादन कर सकते हैं। साथ ही, बारिश के मौसम में भी शेडनेट के कारण फूल सुरक्षित रहते हैं। परंतु, फिलहाल छत्तीसगढ़ सरकार अपने प्रदेश में इस तकनीक के माध्यम से खेती करने वाले कृषकों को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। प्रदेश सरकार इसके लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत संरक्षित खेती हेतु 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है। इस योजना के चलते किसान भाई ज्यादा से ज्यादा 4000 वर्गमीटर में शेडनेट स्थापित कर सकते हैं। 

किसान लगभग 10 लाख रुपये तक की आमदनी कर रही है

छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जनपद के डोंगरगढ़ विकासखंड में किसान शेडनेट तकनीक के इतेमाल से बड़े पैमाने पर खेती कर रहे हैं। बतादें, कि ग्राम कोलिहापुरी के किसान गिरीश देवांगन ने जरबेरा, रजनीगंधा और गुलाब की खेती कर रखी है। इससे वर्षभर में लगभग 10 लाख रुपये की आमदनी हो रही है। गिरीश देवांगन के अनुसार, उनके गांव में उत्पादित किए जाने वाले फूलों की अधिकांश मांग सजावट के उद्देश्य से हो रही है। इसके अतिरिक्त भुवनेश्वर, हैदराबाद, अमरावती एवं नागपुर में भी इस गांव से फूलों का निर्यात किया जा रहा है।

फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए मिल रहा 40% प्रतिशत अनुदान

फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए मिल रहा 40% प्रतिशत अनुदान

फ्लोरीकल्चर को प्रोत्साहन देने के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों अपने अपने स्तर से कवायद कर रही हैं। केंद्र एवं राज्य सरकार की तरफ से भी कुछ ऐसा ही कदम उठाया गया है। राजस्थान में किसानों को खेती करने पर 40 प्रतिशत तक अनुदान प्राप्त होगा। फूलों का इस्तेमाल कार्यालय, घर के साथ बाकी जगहों पर होने वाले कार्यक्रमों में किया जाता है। किसान इससे अच्छी आमदनी कर लेते हैं। एक-एक फूल बाजार में 10 रुपये तक बेचा जाता है। कभी-कभी तो इनकी कीमत 500 रुपये प्रति फूल अथवा ज्यादा भी हो जाती है। भारतीय किसान फल, सब्जी के अतिरिक्त फूलों की खेती से भी मोटी आमदनी कर सकते हैं। केंद्र और राज्य सरकार फूलों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। राजस्थान सरकार की तरफ से हाल ही में फ्लोरीकल्चर को प्रोत्साहन देने के लिए बड़े कदम उठाए गए हैं। इसका प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक फायदा किसानों को मिल सकता है।

राजस्थान सरकार फूलों की खेती पर अनुदान प्रदान कर रही है

राजस्थान में फूलों की खेती को बढ़ावा देने की कवायद की जा रही है। राजस्थान में फूलों की खेती करने वाले कृषकों को अनुदान दिया जाएगा। 2 हेक्टेयर क्षेत्र में लूज फ्लावर मतलब गुलदाउदी, गैलार्डिया, देसी गुलाब, गेंदा की खेती करने के लिए लघु एवं सीमांत कृषकों को कुल लागत पर 40 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जाएगा। जो कि अधिकतम 16 हजार रुपये तक होगी। साथ ही, प्रति हेक्टेयर 40 हजार रुपये तक की लागत आने का अंदाजा है। साथ ही, अन्य कृषकों को 25 प्रतिशत, अधिकतम 10,000 रुपये का अनुदान दिया जाएगा।

यह जरुरी दस्तावेज होने बेहद आवश्यक हैं

फूलों की बागवानी करने हेतु कृषकों के समीप कुछ आवश्यक दस्तावेज होने आवश्यक हैं। इसमें आधार कार्ड की प्रति, जमाबंदी की कॉपी, किसान का शपथपत्र, जन आधार अथवा भामाशाह कार्ड की कॉपी होनी चाहिए। ये भी पढ़े: जरबेरा के फूलों की खेती से किसानों की बदल सकती है किस्मत, होगी जबरदस्त कमाई

राजस्थान के किन जनपदों में यह योजना चल रही है

फूलों के बगीचों के लिए अनुदान योजना विभिन्न जनपदों में जारी की गई है। इनके अंतर्गत डूंगरपुर, श्रीगंगानगर, जयपुर, जैसलमेर, जालौर, झालावाड़, झुंझुंनू, जोधपुर, कोटा, नागौर, पाली, सिरोही, सवाई माधोपुर, टोंक, उदयपुर, बारां, करौली, अजमेर, अलवर, बांसवाडा, बाडमेर, भीलवाड़ा, बूंदी और चित्तौड़गढ़ शम्मिलित हैं।

किसान बगीचों पर बोर्ड जरूर लगाएं

अगर कोई कृषक संपर्क करता है, तो ऐसे किसान को गोबर से निर्मित खाद 1.00 रुपये प्रति किलोग्राम एवं वर्मीकंपोस्ट 1.50 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपलब्ध करवाया जाएगा। फूलों के बगीचे पर अपना विस्तृत विवरण भी भरना होगा। इसके लिए किसान को बगीचे पर एक बोर्ड लगवाना होगा। उस बोर्ड पर किसान का नाम, पता, फूलों की किस्म का नाम, किस वर्ष में बगीचा लगा, कुल क्षेत्रफल और अनुदान का विवरण भी स्पष्ट करना होगा।